जागरूकता-प्रतियोगिता हेतु27-Jul-2024
विषय- धरती कहती बादल से शीर्षक- जागरूकता
बादल तुमको धरती पर आना ही पड़ेगा, झुलस रहे जीवों को बचाना ही पड़ेगा।
सींच के तरु-पल्लव को लहलहाना ही पड़ेगा, हरियाली का बिछौना बिछाना ही पड़ेगा।
रूठ गई है धरती मनाना ही पड़ेगा बादल को अपना प्यार जताना ही पड़ेगा।
खेतों में जो पड़ी दरारें,भरना ही पड़ेगा, धान की रोपनी को तो करना ही पड़ेगा।
जल का स्तर घटने लगा है बढ़ाना ही पड़ेगा, गंगा में जमी रेती घटाना ही पड़ेगा।
मछुआरों को मरने से बचाना ही पड़ेगा, इंद्रदेव जो रुठे मनाना ही पड़ेगा।
पानी की बर्बादी थमाना ही पड़ेगा, वर्षा की इक- इक बूंँद बचाना ही पड़ेगा।
गंगा में बना टापू मिटाना ही पड़ेगा, जलीय जंतुओं से नदियाँ सजाना ही पड़ेगा।
सर,सरिता सब सूख चले बचाना ही पड़ेगा, पावस की पावन बूँदों को हरसाना ही पड़ेगा।
साधना शाही, वाराणसी उत्तर प्रदेश